क्या सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल राजनीतिक संदेश देने के लिए किया जाता है?

सुप्रीम कोर्ट के 13 मई, 2015 के दिशानिर्देशों के तहत - "सरकारी विज्ञापनों की सामग्री सरकार के संवैधानिक और कानूनी दायित्वों के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों और अधिकारों के लिए प्रासंगिक होनी चाहिए"।

शिक्षा विभाग और सूचना एवं प्रचार निदेशालय, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार ने हाल ही में मुंबई के समाचार पत्रों में एक पेज का विज्ञापन प्रकाशित किया था। दिल्ली सरकार द्वारा दूसरे राज्य में विज्ञापन जारी करने की आवश्यकता पर सवाल उठाए गए।

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सरकार में सामग्री विनियमन पर समिति विज्ञापन (सीसीआरजीए) ने आज नोटिस जारी किया है सरकार दिल्ली सरकार के एक विज्ञापन पर दिल्ली के एनसीटी जो 16 को समाचार पत्रों में छपा थाth जुलाई, 2020. समिति ने दिल्ली सरकार के विज्ञापन पर सोशल मीडिया में उठाए गए बिंदुओं पर स्वत: संज्ञान लिया था 

सीसीआरजीए ने दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है

  1. प्रकाशित विज्ञापन पर राजकोष की लागत।
  2. प्रकाशित विज्ञापन का उद्देश्य और विशेष रूप से दिल्ली के अलावा अन्य संस्करणों को प्रकाशित करना।
  3. यह विज्ञापन राजनीतिक हस्तियों के महिमामंडन से बचने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कैसे नहीं करता है।
  4. प्रकाशनों के नाम और उनके संस्करणों के साथ उक्त विज्ञापन का मीडिया प्लान भी प्रस्तुत किया जाए।

आम तौर पर यह सोचा जाता है कि बोर्ड भर की सरकारें राजनीतिक संदेश के लिए सार्वजनिक वित्त पोषित सरकारी विज्ञापनों का उपयोग करती हैं। यदि भविष्य में इस समस्या से निपटने में न्यायालय द्वारा अधिदेशित सीसीआरजीए कारगर साबित होगा तो जनता को इंतजार करना होगा।

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